कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार के उस बयान पर सवाल उठाए हैं, जिसमें इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने कहा था कि सबको वैक्सीन लगाने की जरूरत नहीं है। दरअसल, कुछ ही दिन पहले ICMR के डायरेक्टर जनरल डॉ. बलराम भार्गव ने कहा था कि वैक्सिनेशन की सफलता, उसकी इफेक्टिवनेस पर निर्भर करेगी। हमारा मकसद कोरोना की ट्रांसमिशन चेन को तोड़ना है। अगर हम थोड़ी आबादी (क्रिटिकल मास) को वैक्सीन लगाकर कोरोना ट्रांसमिशन रोकने में कामयाब रहे तो शायद पूरी आबादी को वैक्सीन लगाने की जरूरत न पड़े।
वहीं, स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा था कि सरकार ने कभी नहीं कहा कि पूरे देश में वैक्सिनेशन की जरूरत पड़ेगी। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस तरह के साइंटिफिक मुद्दों पर तथ्यात्मक जानकारी पर बात करें और उनका एनालिसिस करें। सरकार के इस बयान पर राहुल ने सोशल मीडिया पर कहा, ‘प्रधानमंत्री ने कहा- सबको वैक्सीन मिलेगी। बिहार चुनावों में भाजपा ने कहा- बिहार में सबको फ्री वैक्सीन मिलेगी। अब भारत सरकार कह रही है कि कभी नहीं कहा कि सबको वैक्सीन मिलेगी। आखिर प्रधानमंत्री का इस मुद्दे पर स्टैंड क्या है?’
PM- Everyone will get vaccine.
BJP in Bihar elections- Everyone in Bihar will get free vaccine.
Now, GOI- Never said everyone will get vaccine.
Exactly what does the PM stand by?
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 3, 2020
क्या कुछ लोगों को वैक्सीन लगाकर बाकी लोगों को कोरोना से बचाया जा सकता है?
अब तक की स्टडी और मिली जानकारी के मुताबिक, कुछ भी स्पष्ट नहीं है। सरकार का बयान पूरी तरह हर्ड इम्युनिटी के कंसेप्ट पर बेस्ड है। अब तक उपलब्ध वैक्सीन की बात करें तो मीजल्स की वैक्सीन 99% आबादी को लगने पर ही हर्ड इम्युनिटी बनती है। पोलियो में 80% आबादी को वैक्सीन लगने पर यह स्थिति बनती है और तब 20% बची हुई आबादी को पोलियो से सुरक्षित रखा जा सकता है। इस समय देश में 10% आबादी ही कोविड-19 से इनफेक्ट हुई है, ऐसे में कुछ भी नहीं पता कि हर्ड इम्युनिटी कितने कवरेज पर आएगी?
अन्य देशों में भी क्या इसी कंसेप्ट पर काम हो रहा है?
नहीं। अब तक जिन देशों के वैक्सिनेशन प्लान सामने आए हैं, उनमें ज्यादातर लोगों को वैक्सीन लगाने की बात कही गई है। इटली के नेशनल प्लान के मुताबिक, अगले साल के अंत तक सबको वैक्सीन लगाई जाएगी। जापान की संसद में पारित प्रस्ताव में भी ऐसी ही बात कही गई है। यहां तक कि UK, USA और ब्राजील समेत अन्य देशों ने भी पूरी आबादी को वैक्सीन के कवरेज में लाने की बात कही है। यह बात अलग है कि प्रायरिटी ग्रुप्स तय किए गए हैं और शुरुआत में उन्हें वैक्सीन लगाने की योजना है।
COVID-19 से सुरक्षा के लिए दूसरों से उचित दूरी बना कर रखें। COVID-19 के प्रसार की श्रृंखला को तोड़ने में मदद करें। 2 गज की दूरी, मास्क है ज़रूरी। #Unite2FightCorona pic.twitter.com/9LbGQD82xK
— Ministry of Health (@MoHFW_INDIA) December 2, 2020
अगर कुछ ही लोगों को वैक्सीन लगाई तो इम्युनोकॉम्प्रमाइज्ड पेशेंट्स का क्या होगा?
दरअसल, वैक्सीन की एफिकेसी को लेकर अब तक जो डेटा सामने आया है, उसमें कई बातें नहीं है। क्या यह इम्युनोकॉम्प्रमाइज्ड लोगों में भी कोविड-19 को लेकर इम्युनिटी विकसित करेगी? यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसका जवाब स्पष्ट नहीं है। जिनकी कीमोथैरेपी चल रही है या जिन्हें कोई अन्य गंभीर बीमारी है, उन पर वैक्सीन का ट्रायल ही नहीं किया गया है। यहां तक कि बच्चों पर वैक्सीन क्या असर दिखाएगी, यह भी नहीं पता है, क्योंकि भारत में चल रहे ट्रायल्स में 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग को ही वॉलंटियर्स में शामिल किया जा रहा है।
हमारी सरकार सबको वैक्सीन लगाने से मना क्यों कर रही है?
दरअसल, हमारी सरकार की तैयारी ही नहीं है सबको वैक्सीन लगाने की। हमारे इम्युनाइजेशन प्रोग्राम में इस समय सिर्फ बच्चों और गर्भवती महिलाओं को ही वैक्सीन लगाई जाती है। दूसरे देशों की तरह हमारे यहां एडल्ट इम्युनाइजेशन नहीं होता। इस वजह से सरकार सबको वैक्सिनेट करने से बच रही है।
क्या सबको वैक्सिनेट करने में किसी और तरह की दिक्कत भी आ सकती है?
हां। दरअसल, वैक्सीन के ट्रायल्स के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि 60 वर्ष से ज्यादा की आबादी में इम्यून रिस्पॉन्स कितना स्ट्रॉन्ग है। यह समझना बेहद जरूरी है कि प्रत्येक शरीर का इम्यून रिस्पॉन्स अलग होता है। वह वैक्सीन लगने पर अलग तरह से रिएक्ट करेगा। जब तक सभी के नतीजे सामने नहीं आते, तब तक वैक्सिनेट करना समस्याएं सामने ला सकता है।
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